माइटोकॉण्ड्यिा ( Mitochondri )

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माइटोकॉण्ड्यिा ( Mitochondri )
- कोशिकाद्रव्य में कछ धागेदार ( Fi4tnentous ) रचना होती है । ये प्रायः सभी नायवीय कोशिका ( Aerobic cells ) , जैसे — उच्च पौधे , जन्तु तथा कुछ सूक्ष्मजान जैसे - कवक , शैवाल तथा प्रोटोजोआ की कोशिकाओं में पाये जाते हैं । इनको झिल्ली लिपोप्रोटीन की बनी होती है , जिसमें बहुत से इन्जाइम उपस्थित होते हैं , जो उपापचय तथा श्वसन क्रियाओं में भाग लेते हैं और जी उत्पन्न करते हैं , जिसके कारण इनको कोशिका का ऊर्जा घर ( IPower house ) भी कहते हैं । इनके मटिक्स में DNA तथा राइबोसोम भी उपस्थित होता है ।

                 माइटोकॉण्डिया को सबसे पहले कोलिकर ( Kollar ) ने सन 1850 में कीटों की मांसपेशियों में देखा । सन् 1882 में फ्लेमिंग ( Flemming ) ने इनको फाड़ला ( Fila ) नाम दिया । अल्ट्मान ( Alirmal ) ने सन् 1894 में इनको बायोप्लास्ट ( Bioblast ) तथा वर्तमान नाम माइटोकॉड़िया बेण्डा ( Benda ) ने सन् 1897 में दिया ।

            वितरण

- स्तनियों के RBCs के अलावा सभी वकॅरियोटिक कोशिकाओं में यह पाया जाता है । यह केन्द्रक के चारों और व्यवस्थित होता है । यह प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में अनुपस्थित होता है

             संग्रा -

प्रोटोजोआ का एक सदस्य माइक्रोमोनास की कोशिका में केवल एक माइटोकॉण्ड्या होता है , जबकि कीटों की उडन पेशियों में इनकी संख्या लाखों तक होती हैं । सी - अर्चिन के एक आड़े में इसको संरया डेढ़ लाख तक हो सकती हैं ।

          आकति


— ये तन्तनमा लम्बे छह की तरह या धागे के समान हो सकते हैं । इनका आकार कोशिका की । कार्यिकी के आधार पर बदलता है , जो टेनिस रेकेट के आकार के हो सकते हैं ।

                अनिस संरचना –

 हलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की सहायता से देखने पर प्रत्येक माइटोकॉण्डिया दोहरी । भित्ति से बना दिखाई देता है । ये दोनों झिल्लियों में प्रत्येक को मोटाई 75A होती है , जो यूनिद्ध मेम्ब्रेन या प्ला । । झिल्ली का ही रूप है । ।
बाहा झिएली चिकनी होती हैं , वह शिल्ली माइटोकॉण्डिया के भीतर के कक्ष तथा सायटोप्लाज्म को पृथक करती है । भीतरी झिल्ली अन्दर से कई जगह पर ऊँगली प्राधों में बँटी रहती है , जिनको क्रिस्टो कहा । जाता है , इस झिल्ती की बाहरी सतह को Care तथा भौतरी सतह को M - face कहते हैं ।

        मा मिनी तथा भीतरी शिल्ली के बीच लगभग 60 - 80 Aचौड़ा रिक्त स्थान होता है , जिसमें द्रव भरा । होता है , इस खाली स्थान को पैरिकॉण्डियल स्थान ( Perichordial space ) कहते हैं ।

       भीतरी झिल्ली वे अदर एक कक्ष होता हैं । यह माइटोकॉड़िया की केन्द्रीय गुहा होती है , इसमें भरे पदार्थ को मैदिक्स कहा जाता है । मैटिक्स में कई तरह के एन्जाइम भरे होते हैं , जो कोशिकीय वरान को सम्मन्न कराते हैं । क्रिस्टो की जमावट माइटोकॉण्डिया में कछ इस तरह होता है कि इससे भीतरी कक्ष कई खानों में बंटा अतीत होता है अथवा इसकी भीतरी सतह का क्षेत्रफल रासायनिक क्रियाओं को जगह उपलब्ध कराने के प्रयास में कई गुना बढ़ जाता है । इन क्रिस्टी पर एलीमेण्ही पार्टिकल अथवा F , कण काफी मात्रा में विन्यासित रहते हैं । इनको लम्बाई 25 - 100 A और ये एक दूसरे से 100A की दूरी पर स्थित रहते हैं ।

         प्रत्येक F , शग में तीन भाग होते हैं

        ( 1 ) आधार भाग — जो 80A व्यास का होता है । इसके द्वारा F , कण भीतरी झिल्ली से जुड़े होते हैं ।
        ( 2 ) वृत — जिसका व्यास 33A होता है , यह गोलाकार होता है ।
        ( 3 ) शीर्ष भाग - गह 50A लम्बा होता है । यह आधार भाग तथा शार्प भाग को जोड़ता है ।
 वह F , कण वास्तव में एक एन्जाइम हैं , जिसे ATrase कहा जाता है , जो ADP तशा अकार्बनिक फॉस्फेट को जोड़कर ATP बनाता है , अर्थात् ऐडीनोसीन वाइफॉस्फेट से ऐडीनोसीन फॉस्फेट बनाता है । यह ATP सभी । प्रकार की कोशिकाओं में जहाँ भी ऊर्जा की जरूरत हो उसे पूरा करता हैं तथा पुनः ADP में बदल जाता हैं ।

        माइटोकॉन्ड्रियल राइबोसोम ( Mitochondrial ribosome )

– माइटोकॉपिंड्या के मैट्रिक्स में राइबोसोम भी होते हैं जो 705 प्रकार के होते हैं तथा बैन्टीरिया में उपस्थित राइबोसोम के समान होते हैं । माइटोकॉण्डिया में वे सभी संभटक उपस्थित होते हैं , जो प्रोटीन संश्लेषण , DNA संश्लेषण , RNA के । निर्माण , BNA तथा ऐमीनो ऐसिड को प्रेरित करने वाले एन्जाइम उपस्थित होते हैं ।

      माइटोकॉण्डियल

        - माइटोकॉण्डिया के मैट्रिक्स में DNA के एक या दो अणु होते हैं । ये DNA अधिक कुण्डलित , दोहरे स्टैण्ड वाले तथा गल होते हैं । ये DNA वैक्टीरिया के DNA के समान होते हैं । इनमें DNA अणु के विपरीत ( G = C ) की मात्रा अधिक होती हैं । m - DNA केन्द्रक DNA से लम्बाई में छोटा होता है ।

कार्य ( Functions )

         ( 1 ) कार्बोहाइडेट का ऑक्सीकरपा ( Oxidation of carbohydrate ) – कानंहाइड्रेट का ऑक्सीकरण माइटोकॉण्डिया में होता है , जो कई चरणों में पूर्ण होता हैं ।

         ( 2 )
 ग्लादकोलिसिस ( Glveolysis ) - ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण होता हैं । तथा पायरुविक ऐसिड में परिवर्तित होता है ।

         ( 3 ) 
ऑक्सीडेटिव डीझाक्सीनेशन ( Oxidative decarboxylation ) - - ऑक्सीजन की उपस्थिति । में पायरुबिक अम्ल ऐसीटिल कोएन्जाइम के साथ माइटोकॉण्ड्यिा के मैट्रिक्स में क्रिया का ऐसौटिल को । एन्जाइम के दो अणु बनाता है व C0 , का नि
र्माण करता है ।
        
        ( 4 )
 केब्स चक्र ( Krebs Cycle ) - माइटोकॉण्डिया के मैट्रिक्स में ऐसीटिल को एन्जाइम ऑक्सीजन को उपस्थिति में कई चरणों में क्रिया करता है तथा CO , व H ' देता है ।
      
        ( 5 ) 
इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला ( Electrum Transport Chain ) — माइटोकॉण्डूिया के मैटिक्स में क्रेसचक्र के दौरान , जो H निकलते हैं , उनको परिवहन करने के लिए एन्जाइम उपस्थित होते हैं , जो इलेक्ट्रॉनों का परिवहन करते हैं , वे सभी एक श्रृंखला में होते हैं , सब मिलकर इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला बनाते हैं ।
      
        ( 6 ) ATP का निर्माण ( Formation of ATP ) - माइटोकॉण्डिया की भीतरी दीवार में उपस्थित कण में कुछ एहमें उपस्थित होते हैं , जो ATP का संश्लेषण करते हैं ।

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